अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) के अल्पसंख्यक दर्जे पर सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार को फैसला सुनाएगा. सुप्रीम कोर्ट के फैसले से यह तय होगा कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक संस्थान के रूप मे दर्जा दिया जाए या नहीं. सुप्रीम कोर्ट अपने फैसले में तय करेगा कि संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत किसी शैक्षणिक संस्थान को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा देने के मानदंड क्या हैं? साथ ही सुप्रीम कोर्ट ये भी तय करेगा कि क्या संसदीय कानून द्वारा निर्मित कोई शैक्षणिक संस्थान संविधान के अनुच्छेद 30 के अंतर्गत अल्पसंख्यक का दर्जा प्राप्त कर सकता है?
सुप्रीम कोर्ट तय करेगा कि एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान है या नहीं. सात जजों की संविधान पीठ फैसला सुनाएगी. शुक्रवार को सुबह 10.30 बजे यह फैसला आएगा. इस फैसले का असर यह होगा कि अगर सुप्रीम कोर्ट मानता है कि AMU को अल्पसंख्यक दर्जा नहीं रहेगा तो इसमें भी एससी/एसटी और ओबीसी कोटा लागू होगा. साथ ही इसका असर जामिया मिलिया इस्लामिया पर भी पड़ेगा.
इस मामले में सात जजों की पीठ ने आठ दिन सुनवाई कर एक फरवरी को फैसला सुरक्षित रखा था. अब नौ महीने बाद यह फैसला आएगा. सात जजों की संविधान पीठ में CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस दीपांकर दत्ता, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा शामिल हैं.
सुप्रीम कोर्ट के सामने सवाल यह है कि कानून द्वारा स्थापित संस्थान को अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जा सकता है या नहीं. AMU के अल्पसंख्यक दर्जे का मामला पिछले कई दशकों से कानूनी दांव-पेंच में फंसा हुआ है. कोर्ट ने 12 फरवरी, 2019 को इस मामले को सात जजों की संविधान पीठ को भेजा था. इसी तरह का एक संदर्भ 1981 में भी दिया गया था.
साल 1967 में एस अजीज बाशा बनाम भारत संघ मामले में पांच जजों की संविधान पीठ ने कहा था कि चूंकि AMU एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है इसलिए इसे अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता. हालांकि, जब संसद ने 1981 में AMU (संशोधन) अधिनियम पारित किया तो इसे अपना अल्पसंख्यक दर्जा वापस मिल गया. बाद में जनवरी 2006 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने AMU (संशोधन) अधिनियम, 1981 के उस प्रावधान को रद्द कर दिया जिसके द्वारा विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक दर्जा दिया गया था.
केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली UPA सरकार ने 2006 के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ अपील दायर की. विश्वविद्यालय ने भी इसके खिलाफ अलग से याचिका दायर की. लेकिन 2016 में मोदी सरकार ने UPA के विपरीत रुख जताया. सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने विरोध करते हुए कहा कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक दर्जा देने का कोई अर्थ नहीं है.
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने भी किसी भी शिक्षण संस्थान को अल्पसंख्यक दायरे में सीमित रखने के बजाय सबके लिए खुला रखने की बात कही थी. सुप्रीम कोर्ट में लिखित दलीलें दाखिल करते हुए मौजूदा NDA सरकार ने 10 साल पहले की UPA सरकार के विपरीत रुख दिखाया है. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के जरिए दाखिल की गई अपनी दलील में केंद्र सरकार ने कहा है कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक का टैग न दिया जाए. ऐसा इसलिए क्योंकि AMU का राष्ट्रीय चरित्र है. AMU किसी विशेष धर्म का विश्वविद्यालय नहीं हो सकता क्योंकि यह हमेशा से राष्ट्रीय महत्व का विश्वविद्यालय रहा है.
मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि अपने “राष्ट्रीय चरित्र” को देखते हुए, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय अल्पसंख्यक संस्थान नहीं हो सकता है. यह किसी विशेष धर्म का संस्थान नहीं हो सकता है.
UPA सरकार ने 2006 के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की थी. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया था कि AMU अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है. तत्कालीन UPA सरकार ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. हालांकि 2016 में NDA सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि वह UPA सरकार द्वारा दायर अपील को वापस ले रही है.
शीर्ष अदालत के समक्ष दायर अपनी लिखित दलील में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि विश्वविद्यालय हमेशा से राष्ट्रीय महत्व का संस्थान रहा है, यहां तक कि स्वतंत्रता-पूर्व युग में भी इसकी छवि और साख यही रही है.
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्थापना 1875 में हुई थी. केंद्र के मुताबिक AMU एक राष्ट्रीय चरित्र का संस्थान है. दस्तावेज़ में कहा गया कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्थापना से जुड़े दस्तावेज़ों और यहां तक कि तत्कालीन मौजूदा विधायी स्थिति का एक सर्वेक्षण बताता है कि AMU हमेशा एक राष्ट्रीय चरित्र वाला संस्थान था. संविधान सभा में बहस का हवाला देते हुए इसमें कहा गया है कि एक विश्वविद्यालय जो स्पष्ट रूप से राष्ट्रीय महत्व का संस्थान था और है, उसे एक गैर-अल्पसंख्यक विश्वविद्यालय होना चाहिए. विश्वविद्यालय को सूची की प्रविष्टि 63 में शामिल करके एक विशेष दर्जा दिया गया है क्योंकि इसे “राष्ट्रीय महत्व का संस्थान” माना गया था. एसजी ने कहा कि संविधान ने इसे अल्पसंख्यक संस्थान या अन्यथा अर्थ वाला नहीं माना है.