अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) के अल्पसंख्यक दर्जे पर बड़ा फैसला आया है. सुप्रीम कोर्ट ने AMU का अल्पसंख्यक का दर्जा फिलहाल बरकरार रखा है, लेकिन साथ में यह भी साफ किया कि एक नई बेंच इसको लेकर गाइडलाइंस बनाएगी. सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने अपने फैसले में कहा कि एक 3 सदस्यीय नियमित बेंच अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक दर्जे पर फाइनल फैसला करेगी. यह बेंच 7 जजों की बेंच के फैसले के निष्कर्षों और मानदंड के आधार पर एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे के बारे में अंतिम फैसला लेगी.
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के माइनॉरिटी स्टेटस के मामले में 7 जजों की बेंच का फैसला शुक्रवार को आया. हालांकि यह फैसला सर्वसम्मति से नहीं बल्कि 4:3 के अनुपात में आया है. फैसले के पक्ष में सीजेआई, जस्टिस खन्ना, जस्टिस पारदीवाला जस्टिस मनोज मिश्रा एकमत रहे. वहीं जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस एससी शर्मा का फैसला अलग रहा.
इस फैसले का यह असर होगा कि मुस्लिम छात्रों को 50 प्रतिशत सीटें आरक्षित रहेंगी, एससी,एसटी छात्रों को आरक्षण नहीं मिलेगा. जामिया सहित अन्य अल्पसंख्यक विश्वविद्यालयों पर इसका असर पड़ेगा.
एनडीटीवी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में पढ़ रहे छात्रों के विचार जाने. एक छात्र ने कहा कि यह यूनिवर्सिटी माइनारिटी संस्थान है. यह अल्पसंख्यक संस्थान ही रहा है और आगे भी रहेगा. एक छात्र ने कहा कि, ”यह यूनिवर्सिटी उस समय बनी थी जब बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी सहित तीन-चार अन्य विश्वविद्यालय बने थे. देश में सिर्फ यही एक अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है. कई संस्थान हैं, अलग-अलग धर्मों के हैं. एएमयू देश के पिछड़े हुए मुसलमान तबके को ऊपर लाता रहा है.”
एक छात्र ने कहा कि, ”सुप्रीम कोर्ट की बैंच ने यह मामला तीन जजों की बैंच को रिफर किया है. इससे यह साबित होता है कि कोर्ट ने आगे हमारे लिए रास्ता दिखा दिया है. कोर्ट ने माना है कि यह एक अल्पसंख्यक संस्थान है. सर सैयद अहमद खान ने 1875 में यह संस्थान बनाया था. यह तभी से एक अल्पसंख्यक संस्थान है.”
एक छात्र ने कहा कि, ”करीब 4000 से अधिक नॉन मुस्लिम छात्र यहां पढ़ते हैं. सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पूरी दुनिया में यह पैगाम गया कि भारत और यहां की अदालतें अल्पसंख्यकों के अधिकारों का संरक्षण करती हैं. सबको रिजर्वेशन दीजिए कोई तकलीफ नहीं है लेकिन माइनारिटी भी एक तबका है.”