NDTV के ‘इमर्जिंग बिजनेस कॉन्क्लेव’ में 16वें वित्त आयोग के अध्यक्ष, डॉ. अरविंद पनगढ़िया ने भारत के MSME सेक्टर की भूमिका और उसके विकास की दिशा पर महत्वपूर्ण विचार साझा किए. उन्होंने 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने की यात्रा में MSME की भूमिका को अहम बताया.  

MSME की सफलता क्यों है जरूरी?  

डॉ. पनगढ़िया ने कहा कि MSME न केवल रोजगार का एक प्रमुख स्रोत है, बल्कि इसके विकास से भारत की प्रोडक्टिविटी में भी वृद्धि होगी. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि “माइक्रो उद्योग को छोटे, छोटे उद्योगों को मध्यम, और कुछ मध्यम उद्योगों को बड़े उद्योगों में परिवर्तित होना चाहिए.” यह प्रक्रिया धीमी गति से हो रही है, जिससे प्रोडक्टिविटी पर असर पड़ता है. उन्होंने कहा, “अगर प्रोडक्टिविटी तेजी से नहीं बढ़ी, तो 2047 तक ‘विकसित भारत’ का लक्ष्य हासिल करना मुश्किल होगा.”  

भारत में MSME की स्थिति बनाम जर्मनी और चीन  

डॉ. पनगढ़िया ने भारत में MSME की प्रोडक्टिविटी की तुलना जर्मनी और चीन जैसे देशों से करते हुए कहा, “औसत प्रोडक्टिविटी, जो वैल्यू ऐडेड/ वर्कर से मापी जाती है, भारत में इन देशों की तुलना में काफी कम है.” जर्मनी और अमेरिका जैसे विकसित देशों के MSME के पास अधिक पूंजी और संगठित संरचना है. इस अंतर को पाटने के लिए भारत को MSME क्षेत्र में संगठित निवेश और टेक इनोवेशन की आवश्यकता है.  

ग्रामीण और शहरी MSME के बीच गैप कैसे कम होगी?  

ग्रामीण और शहरी MSME के बीच मौजूदा असमानता पर उन्होंने कहा, “अगर हमें विकसित राष्ट्र बनना है, तो हमें संगठनात्मक सुधार के साथ-साथ शहरीकरण को भी बढ़ावा देना होगा.” उन्होंने बताया कि शहरीकरण के जरिए ग्रामीण से शहरी इलाकों में श्रमिकों का स्थानांतरण करना आवश्यक है. उन्होंने कहा कि यह प्रक्रिया न केवल MSME सेक्टर को मजबूत करेगी, बल्कि देश में आर्थिक असमानता को भी कम करने में मदद करेगी.  

विकसित भारत के लिए MSME का भविष्य  

डॉ. पनगढ़िया ने यह भी कहा कि MSME के जरिए रोजगार सृजन और उत्पादकता बढ़ाने के लिए ठोस नीतियां बनानी होंगी. उन्होंने यह स्पष्ट किया कि “हमारे पास रोजगार के मजबूत आंकड़े हैं, लेकिन हमें MSME के प्रोडक्ट एंड वैल्यू एडीशन पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है.”  

भारत को 2047 तक एक विकसित राष्ट्र बनाने की इस चुनौती में MSME क्षेत्र की भूमिका को अनदेखा नहीं किया जा सकता. इसके लिए न केवल सरकार को बल्कि उद्योग जगत और समाज को भी सामूहिक प्रयास करने की आवश्यकता है.

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