विज्ञापनों में चमचमाते टावर, हरियाली से भरे पार्क और बच्चों के लिए प्ले एरिया देखकर लोग संपने संजो लेते हैं. बेहतर जिंदगी की चाहत में लोग जीवन भर की कमाई रियल एस्टेट कंपनी को दे देते हैं. फिर शुरू होता है इंतजार, सालों इंतजार के बाद वो न घर के मालिक बन पाते हैं न उनकी जमा पूंजी उनके पास बचती है.  लाखों होम बायर्स आज अपने सपनों के मलबे में दबे हुए हैं. कभी आसमान छूने वाली रियल एस्टेट कंपनियां जैसे आम्रपाली और अंसल उनकी उम्मीदों को कुचलकर धूल में मिल गईं.  

आम्रपाली से लेकर अंसल तक, भारत की रियल एस्टेट इंडस्ट्री में पिछले डेढ़ दशक में कई कंपनियां डूब चुकी हैं.  सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्यों होता है? क्या वजह है कि ये कंपनियां ग्राहकों के पैसे लेकर भी प्रोजेक्ट पूरे नहीं कर पातीं? क्या रियल एस्टेट रेगुलेशन एंड डेवलपमेंट एक्ट (RERA), जिसे 2016 में होम बायर्स को बचाने के लिए लाया गया था, वाकई कारगर साबित हुआ है? और सुप्रीम कोर्ट इस संकट को सुलझाने में कितना कामयाब रहा है?

आम्रपाली ग्रुप: जिसने तोड़ दिए हजारों लोगों के सपने
आम्रपाली ग्रुप की शुरुआत 2003 में हुई थी. अनिल शर्मा के नेतृत्व में इस कंपनी ने नोएडा और ग्रेटर नोएडा में सस्ते और लग्जरी हाउसिंग प्रोजेक्ट्स की बाढ़ ला दी थी. विज्ञापनों में बड़े-बड़े वादे, क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी जैसे ब्रांड एंबेसडर और चमचमाती बिल्डिंग्स की तस्वीरों ने आम्रपाली को देश की टॉप रियल एस्टेट कंपनियों में शुमार कर दिया था. 2015 तक कंपनी 50 से ज्यादा प्रोजेक्ट्स पर काम कर रही थी और करीब 42,000 होम बायर्स ने इसमें निवेश किया था.  लेकिन इसके बाद सबकुछ डूब गया. 

कंपनी पर आरोप लगा कि उसने होम बायर्स से लिए गए पैसे को दूसरी जगहों पर डायवर्ट कर दिया. सुप्रीम कोर्ट में मामला पहुंचा तो पता चला कि आम्रपाली ने मनी लॉन्ड्रिंग की थी. ऑडिट में खुलासा हुआ कि कंपनी ने 46 सहायक कंपनियों के जरिए फंड्स को गलत तरीके से इस्तेमाल किया. 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने आम्रपाली का रेरा रजिस्ट्रेशन रद्द कर दिया और इसके अधूरे प्रोजेक्ट्स को पूरा करने की जिम्मेदारी नेशनल बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन कॉर्पोरेशन (NBCC) को सौंप दी.  

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अंसल ग्रुप ने शायद आम्रपाली की गलती से नहीं सीखा
अंसल ग्रुप की कहानी भी कुछ कम दर्दनाक नहीं है. 1967 में शुरू हुई यह कंपनी कभी दिल्ली-एनसीआर में रियल एस्टेट की बादशाह थी.  सुशील अंसल और प्रणव अंसल के नेतृत्व में इसने अंसल प्लाजा जैसे मॉल और कई रिहायशी प्रोजेक्ट्स बनाए. लेकिन पिछले एक दशक में अंसल ग्रुप भी कर्ज के बोझ और कानूनी पचड़ों में फंस गया. 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने अंसल ग्रुप को लखनऊ में अपने एक प्रोजेक्ट में देरी के लिए होम बायर्स को मुआवजा देने का आदेश दिया. इसके बाद कंपनी की वित्तीय हालत बिगड़ती चली गई.

अंसल ग्रुप पर आरोप है कि उसने प्रोजेक्ट्स के लिए जरूरी मंजूरियां नहीं लीं और ग्राहकों से लिए गए पैसे का इस्तेमाल कर्ज चुकाने और दूसरी जगहों पर किया. 2022 तक कंपनी का कर्ज 5,000 करोड़ रुपये से ज्यादा हो चुका था. कई प्रोजेक्ट्स अधूरे पड़े हैं, और बायर्स कोर्ट के चक्कर काट रहे हैं. 

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पिछले 10 साल में डूबी रियल एस्टेट कंपनियों की लिस्ट

पिछले एक दशक में कई रियल एस्टेट कंपनियां डूब चुकी हैं या दिवालिया घोषित हो चुकी हैं.

  • आम्रपाली ग्रुप- 2019 में RERA रजिस्ट्रेशन रद्द, एनबीसीसी को सौंपे गए प्रोजेक्ट्स. 
  • अंसल एपीआई – कर्ज और कानूनी विवादों में फंस गई कंपनी, कई प्रोजेक्ट्स अधूरे.
  • यूनिटेक – 2017 में एनसीएलटी में दिवालिया प्रक्रिया की शुरुआत हुई, होम बायर्स का पैसा अटक गया. 
  • जेपी इन्फ्राटेक –  2017 में दिवालिया घोषित हो गई कंपनी यमुना एक्सप्रेसवे प्रोजेक्ट प्रभावित हुआ. 
  • सुपरटेक – 2022 में एनसीएलटी ने दिवालिया प्रक्रिया शुरू की, 40,000 से ज्यादा फ्लैट्स अटके हैं. 
  • 3सी कंपनी–  कई प्रोजेक्ट्स में देरी हुई है वित्तीय संकट में फंसी है कंपनी
  • पार्श्वनाथ डेवलपर्स- कर्ज में डूबी है कंपनी कई प्रोजेक्ट्स रुके हैं.
  • एचडीआईएल- 2019 में दिवालिया घोषित हो गई कंपनी पीएमसी बैंक घोटाले से जुड़ा नाम. 
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क्यों डूब जाती है रियल एस्टेट कंपनियां?
रियल एस्टेट कंपनियों के डूबने के पीछे कई कारण हैं. आम्रपाली ग्रुप पर सुप्रीम कोर्ट की जांच में खुलासा हुआ कि कंपनी ने ग्राहकों से मिले फंड्स को 46 सहायक कंपनियों में डायवर्ट किया और प्रोजेक्ट्स को पूरा करने के बजाय दूसरी जगह खर्च किया.

  • फंड्स का गलत इस्तेमाल : आम्रपाली और जेपी जैसी कंपनियों ने होम बायर्स से लिया पैसा नए प्रोजेक्ट्स शुरू करने या कर्ज चुकाने में खर्च कर दिया, जिससे मूल प्रोजेक्ट्स अधूरे रह गए.
  • अत्यधिक कर्ज: अंसल और सुपरटेक जैसी कंपनियां कर्ज के जाल में फंस गईं. ब्याज का बोझ बढ़ने से उनकी वित्तीय हालत चरमरा गई.
  • संस्थागत समस्याएं: भारत में रियल एस्टेट प्रोजेक्ट्स को शुरू करने के लिए कई मंजूरियां लेनी होती है, जिनमें दो साल तक लग सकते हैं. इससे प्रोजेक्ट्स की लागत बढ़ती है और समय पर डिलीवरी मुश्किल हो जाती है.
  • बाजार में मंदी: 2016 के बाद नोटबंदी और जीएसटी जैसे कदमों से प्रॉपर्टी की मांग घटी, जिससे कंपनियों की आय प्रभावित हुई.
  • पारदर्शिता की कमी: कई कंपनियां ग्राहकों को अधूरी जानकारी देती हैं, जिससे कानूनी विवाद बढ़ते हैं और प्रोजेक्ट्स रुक जाते हैं. 
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RERA की जरूरत क्यों हुई? 
पहले रियल एस्टेट सेक्टर में कोई सख्त नियम नहीं थे. बिल्डर मनमानी करते थे. प्रोजेक्ट्स में देरी, फंड्स का दुरुपयोग और ग्राहकों को गुमराह करना आम था. रेरा का लक्ष्य था इस अनियमित सेक्टर को व्यवस्थित करना और होम बायर्स को कानूनी संरक्षण देना.  हालांकि समय के साथ इसके नियमों को लागू करने में कई राज्यों में परेशानी देखने को मिल रही है. 

क्या रेरा के आने से लोगों को हुई राहत? 
कुछ मामलों में रेरा का लाभ लोगों को मिला.  कुछ  रेरा अथॉरिटी और अपीलीय ट्रिब्यूनल ने कई मामलों में होम बायर्स को राहत दी. देरी होने पर बिल्डर को ब्याज सहित रिफंड देना पड़ता है.जेक्ट्स की जानकारी अब ऑनलाइन उपलब्ध होती है.

रेरा के सामने क्या-क्या हैं चुनौती?
रेरा के सामने कई चुनौतियां समय-समय पर आती रही है. कई मामलों में कुछ समस्याएं इसके अधिकार क्षेत्र से बाहर के होते हैं इस कारण समय पर कार्रवाई नहीं हो पाती है. 

  • सीमित अधिकार: भूमि राज्य का विषय है, इसलिए रेरा सुपर-रेगुलेटर नहीं बन सकता. मंजूरियों में देरी को रोकने के लिए इसके पास शक्ति नहीं है.
  • सिंगल-विंडो सिस्टम की कमी: मंजूरियों की जटिल प्रक्रिया अभी भी बरकरार है.
  • असमान लागू करना: कई राज्यों में रेरा पूरी तरह प्रभावी नहीं है. 
  • पुराने प्रोजेक्ट्स : रेरा नए प्रोजेक्ट्स पर ज्यादा असरदार है, लेकिन पुराने अधूरे प्रोजेक्ट्स को सुलझाने में कमजोर साबित हुआ है.  
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सुप्रीम कोर्ट का क्या रहा है फैसला?
सुप्रीम कोर्ट ने रियल एस्टेट संकट को सुलझाने में अहम भूमिका निभाई है. आम्रपाली केस में कोर्ट ने 2019 में सख्त कदम उठाते हुए कंपनी का रजिस्ट्रेशन रद्द कर दिया था. और एनबीसीसी को प्रोजेक्ट्स पूरे करने का आदेश दिया. कोर्ट ने नोएडा और ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी पर भी सवाल उठाए, जो बिल्डरों के साथ मिलीभगत में शामिल थीं. जेपी इन्फ्राटेक और यूनिटेक जैसे मामलों में भी कोर्ट ने होम बायर्स के हितों को प्राथमिकता दी.

हाल ही में बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक फैसले में कहा कि अगर बिल्डर को होम बायर्स से पैसा नहीं मिला, तब भी वो रिफंड के लिए जिम्मेदार है. सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि बिल्डरों की जवाबदेही तय करना जरूरी है, ताकि होम बायर्स का भरोसा बहाल हो सके.

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दोषियों के खिलाफ हुई है कार्रवाई लेकिन कडे़ सजा की जरूरत
भारत में रियल एस्टेट क्षेत्र में भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी के मामले बढ़ने के बाद सरकार और न्यायिक संस्थानों ने सख्त कदम उठाए हैं. हालांकि अभी भी कड़े सजा की जरूरत है. आम्रपाली ग्रुप के खिलाफ 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया था. ग्रुप के प्रमोटर को जेल भी जाना पड़ा था. इसी तरह यूनिटेक के प्रमोटर संजय चंद्रा को 2017 में धोखाधड़ी के आरोप में गिरफ्तार किया गया, और कंपनी को सरकारी नियंत्रण में लिया गया. रेरा के तहत बिल्डरों पर जुर्माना, प्रोजेक्ट्स का जब्ती और जेल की सजा का प्रावधान भी है. हालांकि बड़े मामलों को छोड़ दिया जाए तो छोटे-छोटे हजारों केस लंबित हैं जिसपर अभी सुनवाई होनी बाकी है. 

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