संसद ने वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 और मुसलमान वक्फ (निरसन) विधेयक, 2024 को पारित कर दिया है. अब इसे मंजूरी के लिए राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा. इन दोनों विधेयकों पर लोकसभा में बुधवार को और राज्य सभा में गुरुवार को देर रात तक जोरदार चर्चा हुई. दोनों ही सदनों में ये दोनों बिल बहुमत से पास हुए. इसे एनडीए में शामिल दलों के साथ-साथ कुछ छोटे दलों का भी समर्थन मिला.एनडीए में शामिल जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) ने भी इस विधेयक का पुरजोर समर्थन किया. लेकिन उसका यह स्टैंड उसके लिए भारी पड़ता दिख रहा है. इस रुख के विरोध में पार्टी के छह नेताओं ने अब तक पार्टी से इस्तीफा दे दिया है. जेडीयू में इस बिल पर विरोध के स्वर ऐसे समय दिखाई दे रहे हैं, जब इसी साल राज्य में विधानसभा चुनाव होने हैं.  

वक्फ बिल पर जेडीयू में विरोध के स्वर

वक्फ बिल के विरोध में जेडीयू में इस्तीफे की शुरुआत डॉक्टर मोहम्मद कासिम अंसारी ने की.पूर्वी चंपारण से आने वाले अंसारी ने पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया.उन्होंने अपना इस्तीफा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भेजा. हालांकि जेडीयू अंसारी को अपनी पार्टी से जुड़ा हुआ ही नहीं मान रही है. अंसारी के अलावा पूर्व प्रदेश सचिव एम राजू नैयर, अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के प्रदेश सचिव मोहम्मद शाहनवाज मलिक,पश्चिम चंपारण जिले के उपाध्यक्ष नदीम अख्तर, प्रदेश महासचिव सीएन मोहम्मद तबरेज सिद्दीकी अली और भोजपुर में जेडीयू नेता मोहम्मद दिलशान राईन के भी नाम शामिल हैं.

ऐसा नहीं है कि मुस्लिम नेता वक्फ बिल का समर्थन करने की वजह से केवल इस्तीफा ही दे रहे हैं. इससे पहले इमारत-ए-शरिया नाम के एक सामाजिक-धार्मिक संस्था ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की इफ्तार पार्टी का बहिष्कार किया था. इमारत-ए-शरिया बिहार में आजादी के पहले से काम कर रही है. इसका प्रभाव बिहार, झारखंड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल तक माना जाता है. इस संस्था ने भी नीतीश की इफ्तार पार्टी का बहिष्कार वक्फ बिल पर जेडीयू के रुख को देखते हुए किया था. कासिम अंसारी ने अपने इस्तीफे में लिखा है कि उन्हें और उनके जैसे करोड़ों भारतीय मुसलमानों को नीतीश कुमार पर भरोसा था. वे उन्हें सेक्युलर विचारधारा का समर्थक मानते थे, लेकिन अब उनका यह विश्वास टूट गया है.उन्होंने कहा है कि ललन सिंह ने लोकसभा में जिस तरह से बात की और बिल का समर्थन किया, उससे वे बहुत आहत हैं.

बिहार में मुसलमानों की आबादी करीब 18 फीसदी है. राजनीति के लिहाज से यह एक बड़ा वोट बैंक है.

बिहार में मुसलमानों की आबादी करीब 18 फीसदी है. राजनीति के लिहाज से यह एक बड़ा वोट बैंक है.

नीतीश कुमार और मुसलमान

इन इस्तीफों के सवाल पर जेडीयू प्रवक्ता नीरज कुमार ने बहुत अधिक महत्व नहीं दिया है. उनका कहना है कि नीतीश कुमार हमेशा अल्पसंख्यकों के साथ खड़े रहे हैं और रहेंगे.उनका कहना है कि नीतीश कुमार मुख्यमंत्री हैं तो अल्पसंख्यक महफूज हैं. इस बीच इन इस्तीफों से परेशान जेडीयू ने शुक्रवार को अपने प्रवक्ताओं की बैठक बुलाई. इसमें प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा भी शामिल हुए. बैठक में वक्फ बिल के समर्थन से पैदा हुई स्थिति से निपटने के तौर-तरीकों पर चर्चा हुई.

वक्फ बिल का जेडीयू में विरोध कोई नई बात नहीं है. उसके विधान परिषद सदस्य गुलाम गौस ने भी इस बिल का विरोध किया था. उन्होंने कहा था कि बीजेपी की सरकार हमेशा मुस्लिमों के खिलाफ ही काम करती है. इस बिल के जरिए वक्फ बोर्ड की जमीन को छीनने की कोशिश की जा रही है. उनका कहना था कि वक्फ के पास जो जमीन है, उससे मुसलमानों की भलाई के लिए कई कार्यक्रम चलाए जाते हैं.

बिहार में मुस्लिम वोट

बिहार सरकार ने एक जातीय सर्वेक्षण कराया था. इसके मुताबिक बिहार में मुसलमानों की आबादी करीब 18 फीसदी है. अगर राजनीतिक रूप से देखें तो यह एक बहुत बड़ा राजनीतिक वोट बैंक है. बिहार में मुसलमानों को मुख्यतौर पर आरजेडी का समर्थक माना जाता है. लेकिन नीतीश कुमार के जेडीयू का भी मुसलमानों में अच्छी पैठ मानी जाति थी. साल 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी से संबंध तोड़ लेने से मुसलमानों में उनकी और पैठ बनी थीं.लेकिन इसके बाद वो अब फिर बीजेपी के साथ हैं. वक्फ बिल को लेकर पूरे देश के मुसलमानों में गुस्सा है. इस बिल का समर्थन का नीतीश ने मुसलमानों का गुस्सा मोल ले लिया है. जेडीयू को इसका नुकसान होगा या फायदा, इसकी जानकारी इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव के परिणाम देंगे. 

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