संयुक्त राज्य अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ‘टैरिफ़’ को शब्दकोष का सबसे खूबसूरत लफ़्ज़ करार दिया है – और रिपब्लिकन राष्ट्रपति के दूसरे कार्यकाल के दौरान तीन लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के समूचे आयातित सामानों को लेकर आमूलचूल कदम उठाए जाने की उम्मीद की जा सकती है. ऐसा पहली बार भी नहीं होगा, जब ट्रंप ने दुनिया के बाकी मुल्कों पर दबाव बनाने के लिए टैरिफ़ का इस्तेमाल किया हो. सो, ऐसे में आम आदमी और व्यवसायों को क्या उम्मीद करनी चाहिए…?

क्या कसम खाई थी डोनाल्ड ट्रंप ने…?

डोनाल्ड ट्रंप सभी प्रकार के आयात पर न्यूनतम 10 फ़ीसदी और चीन के सामान पर 60 फ़ीसदी या उससे भी ज़्यादा टैरिफ़ का वादा कर चुके हैं – चीन तथा अन्य देशों के सामान पर कर बढ़ा भी चुके हैं.

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उनका कहना था कि इसका मकसद उन देशों को निशाना बनाना था, जो ‘कई सालों से हमें खोखला कर रहे थे,’ और मकसद अमेरिकी व्यापार घाटे को कम करना भी था. डोनाल्ड ट्रंप ने मैक्सिको से आने वाले वाहनों पर 200 फ़ीसदी से अधिक टैरिफ़ का भी सुझाव दिया और कहा कि यह अमेरिकी ऑटो कंपनियों की सुरक्षा के लिए है.

इसी हफ़्ते, पेन्सिलवेनिया में ट्रंप ने चीन और मैक्सिको को ज़्यादा कसकर निशाना बनाने की चेतावनी दी, यदि इन मुल्कों ने घातक फेंटेनाइल दवा को अमेरिका में प्रवेश से नहीं रोका.

हालांकि, विशेषज्ञ ध्यान दिलाते हैं कि जब अमेरिकी सरकार आयात पर किसी तरह का शुल्क लगाती है, तो दरअसल अमेरिकी कारोबारी ही सरकार को इस शुल्क का भुगतान किया करते हैं.

क्या ट्रंप ऐसा कर सकते हैं…?

कैटो इंस्टीट्यूट में जनरल इकोनॉमिक्स के वाइस-प्रेसिडेंट स्कॉट लिन्सीकॉम का कहना था, “काफ़ी बड़ा जोखिम है…” समाचार एजेंसी AFP से बातचीत में उन्होंने कहा, “ऐसे कानून भी हैं, जिनके ज़रिये राष्ट्रपति कतई एकतरफ़ा तरीके से बेहद व्यापक और विवेकाधीन कारणों के नाम पर टैरिफ़ लागू कर सकते हैं…” उन्होंने कहा कि इन कारणों में राष्ट्रीय सुरक्षा भी शामिल है.

लिन्सीकॉम के मुताबिक, “अदालतें भी उस अधिकार पर अंकुश लगाने के लिए कतई अनिच्छुक रही हैं…”

इसके अतिरिक्त, विशेषज्ञ अंतरराष्ट्रीय आपातकालीन आर्थिक शक्ति अधिनियम जैसे कानूनों की ओर इशारा करते हैं, जिनके तहत राष्ट्रपति को राष्ट्रीय आपातकाल घोषित करने और व्यापार को प्रतिबंधित करने की शक्ति मिल जाती है.

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