Sleep Crisis: नींद सभी के लिए बहुत जरूरी है. सलाह तो ये भी दी जाती है कि सही समय पर सोने की आदत डालें और कम से कम सात घंटे की नींद तो पूरी कर ही लें. लेकिन भारत की अधिकांश महिलाएं इस जरूरी चीज से दूर होती जा रही हैं. अधिकांश महिलाएं ऐसी हैं जो अलग अलग कारणों से स्लीप क्राइसेस से जूझ रही हैं. जब से महिलाओं ने घर के साथ साथ बाहर की जिम्मेदारी संभाली है. तब से घर का काम संभालने और साथ में ऑफिस का काम संभालने के बीच वो नींद के साथ बैलेंस नहीं बिठा पा रही हैं. जिसका नतीजा है स्लीप क्राइसिस.

क्या होता है स्लीप क्राइसिस? (What is Sleep Crisis)

नींद न आना और नींद आने के बावजूद सो न पाना दोनों अलग अलग कंडिशन्स हैं. बहुत से लोग नींद न आने की समस्या का शिकार होते हैं. जिसे स्लीप डिप्राइव कहा जाता है. वो लोग चाह कर भी नहीं सो पाते हैं. लेकिन स्लीप क्राइसेस इससे थोड़ी अलग तरह की समस्या है. जो लोग इससे जूझते हैं वो ऐसे लोग हैं जिनके पास पर्याप्त नींद लेने का समय ही नहीं है. जिसकी वजह से वो अधिकांश दिन कम घंटे सो पाते हैं और स्लीप क्राइसिस का शिकार होते हैं.

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सर्वे में हुए खुलासे

ResMed नाम के एक ग्लोबल हेल्थ टेक्नॉलॉजी लीडर ने एक सर्वे करवाया है. इस सर्वे का नाम है 5वां ग्लोबल स्लीप सर्वे (भारत). इस सर्वे के मुताबिक भारत में लोग हर हफ्ते लगातार तीन दिन तक पूरी नींद नहीं ले पाते हैं. रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि पुरुषों के मुकाबले महिलाओँ की स्लीप क्वालिटी ज्यादा खराब है.

सर्वे के मुताबिक महिलाओं और पुरुषों की नींद के समय में काफी बड़ा अंतर है. अगर एक हफ्ते में पुरुष 4.13 दिन अच्छी नींद ले पाता है. तो, पूरे हफ्ते में महिलाएं सिर्फ 3.83 दिन ही अच्छी नींद ले पाती हैं.

नींद न आने के कई अलग अलग कारण हैं. जिसमें से एक हॉर्मोनल चेंजेस भी हैं. इस कीफेक्टर को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.

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क्यों स्लीप क्राइसिस से जूझ रही हैं महिलाएं?

अब सवाल ये उठता है कि स्लीप क्राइसिस से जूझने की मजबूरी क्या है. इसका भी कारण रिवील किया गया है. इंडियन फैमिलीज में महिला हमेशा ही प्राइमरी केयर गिवर रही है. फिर वो चाहें घर के बच्चे हों या फिर घर के बड़े बुजुर्ग ही क्यों न हो. सबका ध्यान रखने की जिम्मेदारी महिलाओं की ही रहती है. महिलाएं भले ही घर से बाहर काम करने निकलने लगी हैं. लेकिन उनके घरेलू रोल में कोई फर्क नहीं आया है.

सर्वे में ये भी पाया गया है कि मुंबई जैसे शहरों में महिलाएं छोटे छोटे काम भी करने को मजबूर हैं. घर में सब्जी काटने से लेकर लंच या डिनर पकाने तक की जिम्मेदारी उन्हीं पर है. ऑफिस के साथ साथ इस घर के काम करने की वजह से वो नींद से समझौता कर रही हैं.

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