प्राकृतिक जड़ी-बूटियों और औषधीय पौधों की बात करें तो बेहया (थेथर) का नाम कम ही सुना जाता है, लेकिन शोध में इस पौधे के कई चौंकाने वाले लाभ सामने आए हैं. आयुर्वेद में बेहया (जिसे थेथर या बिछिया भी कहा जाता है) को औषधीय गुणों वाला पौधा माना गया है और अब वैज्ञानिक अध्ययन भी इसके फायदों की पुष्टि कर रहे हैं. रिसर्च गेट के एक अध्ययन के अनुसार, बेहया के पत्तों और जड़ों में एंटीऑक्सीडेंट, एंटी-इंफ्लेमेटरी और जीवाणुरोधी गुण पाए गए हैं, जो कई बीमारियों से बचाव में मदद कर सकते हैं. शोध में पाया गया कि बेहया के अर्क (रस) का उपयोग गठिया, मांसपेशियों के दर्द और जोड़ों की सूजन में कारगर साबित हो सकता है.

थेथर की पत्तियों का रस पाचन सुधारने, अपच दूर करने और पेट की समस्याओं को कम करने में मदद कर सकता है. शोध के अनुसार, इस पौधे में मौजूद तत्व ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रित करने में सहायक हो सकते हैं, जिससे यह मधुमेह रोगियों के लिए फायदेमंद हो सकता है. बेहया के पत्तों से निकाला गया रस त्वचा रोगों, घावों और जलन को ठीक करने में मददगार पाया गया है. इसके सेवन से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूनिटी) को बढ़ावा मिलता है, जिससे मौसमी बीमारियों से बचाव हो सकता है.

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आयुर्वेद में बेहया को एक प्राकृतिक औषधि माना गया है. इसे पत्तों, जड़ों और फूलों के रूप में औषधीय प्रयोग में लाया जाता है. पारंपरिक चिकित्सा में बुखार, खांसी, चोट और पीलिया जैसी बीमारियों के इलाज में इसका उपयोग किया जाता रहा है. विशेषज्ञों की राय है कि इसका सेवन सीमित मात्रा में करना ठीक होता है और किसी गंभीर बीमारी की स्थिति में डॉक्टर की सलाह जरूर ली जानी चाहिए. वहीं, गर्भवती महिलाओं और छोटे बच्चों के लिए इसका सेवन करने से पहले सावधानी बरतनी चाहिए. शोध में पाया गया है कि इसे सही मात्रा और सही तरीके से उपयोग किया जाए, तो यह कई स्वास्थ्य समस्याओं का प्राकृतिक समाधान बन सकता है.

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इसके साथ ही बेहया के रस का उपयोग अब खेती में भी एक प्रभावी उपाय बन गया है, क्योंकि इसके एंटीबायोटिक, एंटीसेप्टिक और एंटीमाइक्रोबियल गुण फसलों को बैक्टीरिया और कीटों से बचाने में मदद करते हैं. यह न केवल कीटों को दूर करता है, बल्कि पशुओं से भी फसलों की सुरक्षा करता है, क्योंकि इसका रस जानवरों के लिए जहरीला होता है, और वे इससे दूर रहते हैं.

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