Exclusive: चुनाव, इफ्तार, जाति से लेकर नीतीश, तेजस्वी पर खुलकर बोले PK? जानें किस सवाल पर क्या कहा

बिहार चुनाव की बिसात बिछ चुकी है. अब हर कोई शह मात के इस खेल में जीतने के इरादे से अपने पासे चल रहा है. चुनावी रणनीतिकार बिहार चुनाव के लिए कमर कस चुके हैं, आज पटना के गांधी मैदान में होने जा रही बिहार बदलाव रैली से पार्टी चुनावी शंखनाद भी फूंक देगी. जुन सुराज पार्टी नेताओं ने दावा किया है कि गांधी मैदान में होने वाली रैली में हजारों की संख्या में पार्टी कार्यकर्ता, समर्थक शामिल होंगे और अपनी ताकत दिखाएंगे. एनडीटीवी को दिए एक विशेष इंटरव्यू में प्रशांत किशोर ने इस रैली, जन सुराज के मिशन, और बिहार की चुनौतियों पर खुलकर बात की. 

सवाल 1: क्या यह टिपिकल राजनीति नहीं? रैली करना, लोगों को लाना—क्या यह पुरानी राजनीति नहीं है?

प्रशांत किशोर का जवाब: “किसने कहा कि हम बसों से लोगों को ला रहे हैं? 2 अक्टूबर 2022 को जब जन सुराज बनी थी, उसी दिन हमने घोषणा की थी कि मार्च 2023 में एक बड़ी सभा होगी. वह तारीख बढ़कर 11 अप्रैल हो गई. यह जन सुराज की पहली राज्य-स्तरीय रैली है. पहले हम गांव-गांव में 10-20 लोगों से मिलते थे, फिर बापू सभागार में 10-15 हजार लोग जुटे. जब समर्थक 2 लाख तक पहुंचे, तो वेटरनरी ग्राउंड में सभा हुई. अब जन सुराज परिवार इतना बड़ा हो गया है कि गांधी मैदान ही एकमात्र जगह थी जहां हम एकसाथ मिल सकते थे.”

सवाल 2: जन सुराज की रैली में क्या अलग है? अगर  “पार्टी विद अ डिफरेंस” है, तो इसमें नया क्या है? 

प्रशांत किशोर का जवाब: “पार्टी विद अ डिफरेंस का मतलब यह नहीं कि हम जनता से संपर्क ही न करें. अंतर संवाद के कंटेंट में है. हमने दो साल तक पैदल यात्रा की और आज भी गांव-गांव जा रहे हैं. अगर राज्य भर के लोग एक जगह मिलना चाहते हैं, तो क्या यह गलत है? हम ताकत नहीं दिखा रहे. अगस्त-सितंबर में ताकत दिखेगी.  यह रैली जन सुराज परिवार की भावना को पूरा करने के लिए है.”

सवाल 3: बिहार के लिए जन सुराज के टॉप-3 एजेंडे क्या हैं?

प्रशांत किशोर का जवाब: “पहला, पलायन और बेरोजगारी. दूसरा, भ्रष्टाचार और अफसरशाही. तीसरा, शिक्षा व्यवस्था का ध्वस्त होना. बिहार में सरकार का इकबाल खत्म हो गया है. लालू-राबड़ी के राज में अपराधी सरकार चलाते थे. आज नीतीश कुमार की मानसिक-शारीरिक स्थिति ऐसी है कि कोई नहीं जानता सरकार चला कौन रहा है. महज चंद अफसर बिहार को भगवान भरोसे चला रहे हैं.”

सवाल 4: क्या बिहार में मुद्दे रेजोनेट करते हैं, या जातिवाद हावी है?

प्रशांत किशोर का जवाब:  जब लोग कहते हैं कि विकास, शिक्षा, पलायन और रोजगार के मुद्दे रेजोनेट करते हैं तो हम लोग कहीं ना कहीं बिहार के लोगों की समझदारी पर प्रश्नचिन्ह लगा रहे हैं. बिहार में “यह मानना कि बिहार में सिर्फ जाति ही मुद्दा है, ये तो बिहारियों की समझदारी पर सवाल उठाना है. अगर विकास मुद्दा नहीं होता, तो नीतीश कुमार को 2010 में 117 सीटें कैसे मिलतीं? और 2020 में वही जनता उन्हें 42 सीटों पर क्यों ले आई? लालू जी को अपने दम पर 1995 में बहुमत आता, लेकिन चारा घोटाले और जंगल राज के बाद वे सत्ता में नहीं लौट सके. कोविड के 3 महीनों में नीतीश का सुशासन खत्म हो गया. वो चुनाव में भी दिखा कि 117 विधायक वाले, 175 वाले 42 पर आ गए.

सवाल 5 : चुनाव में चिराग फैक्टर से किसको नफा-नुकसा

प्रशांत किशोर का जवाब: चिराग पासवान खड़े हो गए काट लिया. चिराग पासवान तो 2010 में भी खड़े थे लेकिन जब सुशासन का तमगा आपके साथ था. लोगों को विश्वास था कि आप बिहार के लिए विकास की बात कर रहे हैं. विकास करने की कोशिश कर रहे हैं तो वही नीतीश कुमार को जनता ने 117 सीट दिया था और सिर्फ नीतीश नहीं आप देखिए. अगर आप चिराग वाला फैक्टर बताते हैं कि नीतीश का इसलिए कम हुआ कि चिराग लड़े तो भाजपा की सीटों पर तो चिराग नहीं लड़े थे. भाजपा का आंकड़ा देख लीजिए. 2010 में भाजपा 101 सीट लड़ी थी और 90 सीट जीते थे. वहीं भाजपा इस बार 110 सीट लड़ी है और 72 सीट जीते हैं. उनका भी स्ट्राइक रेट 60 हो गया तो विकास या लोगों के मुद्दे जो हैं वह बिल्कुल नगण्य नहीं. हां जाति भी एक फैक्टर है जाति धर्म के नाम पर उन्माद है लेकिन सिर्फ उसी नाम पर हर आदमी वोट कर रहा है. ऐसा बिल्कुल नहीं है.

सवाल 6 : इफ्तार पार्टी में शामिल होने पर क्या बोले प्रशांत किशोर

प्रशांत किशोर का जवाब:   जन सुराज ने कोई इफ्तार पार्टी आयोजित नहीं की. मैं गांव-गांव जाता हूं. अगर रमजान में लोग इफ्तार कर रहे हैं, तो मैं शामिल होता हूं. होली, रामनवमी, दुर्गा पूजा में भी जाता हूं. यह सामाजिक समरसता है, राजनीति नहीं. अगर गांव में इफ्तार हो रहा है तो क्यों नहीं जाएंगे. हम अपने घर नहीं करते.

सवाल 7: क्या जन सुराज जातियों को साधने की कोशिश कर रही है?

प्रशांत किशोर का जवाब: जाति की समझ होना और जाति की राजनीति करना दो अलग बातें हैं. जन सुराज का मुद्दा सही लोग, सही सोच, शिक्षा, और रोजगार है. हमने कभी नहीं कहा कि इस समाज का वोट लेंगे, उस समाज को जोड़ेंगे. टिकट बंटवारे पर हमारी परिकल्पना संविधान पर आधारित है—जिस समाज की जितनी आबादी, उतनी हिस्सेदारी. लेकिन हिस्सेदारी काबिलियत के आधार पर होगी. अगर मुस्लिम आबादी 18 फीसदी है, तो 40 सीटों पर सबसे काबिल मुस्लिम उम्मीदवार होंगे. मैं 3 साल में किसी जातीय बैठक में नहीं गया. आप तेजस्वी यादव को देखिए—वे भुयां, कुशवाहा, ब्राह्मण, भूमिहार बैठकों में जाते हैं. हम ऐसी राजनीति नहीं करते.

सवाल 8: क्या प्रशांत किशोर 2025 में चुनाव लड़ेंगे? नीतीश-तेजस्वी को देंगे चुनौती

प्रशांत किशोर का जवाब:  मैं नीतीश या तेजस्वी का चैलेंजर नहीं हूं.  मैं उस व्यवस्था का चैलेंजर हूं, जिसने 35 साल से बिहार को राजनीतिक बंधुआ मजदूर बना रखा है. लोग लालू के डर से नीतीश-बीजेपी को, और नीतीश-बीजेपी के डर से लालू को वोट देते हैं. जन सुराज इस बंधन को तोड़ेगी. अगर पार्टी तय करती है कि मैं चुनाव लड़ूं, तो मैं राघोपुर से भी लड़ सकता हूं.”

सवाल 9 : क्या बाकी दलों की तरह प्रशांत भी जाति की राजनीति का सहारा ले रहे हैं?

प्रशांत किशोर का जवाब:  चिराग पासवान की छवि मैं ऐसे नेता के तौर पर नहीं देखता हूं जो विशुद्ध तौर पर पासवान की राजनीति कर रहा है. तेजस्वी यादव विशुद्ध तौर पर जात की राजनीति कर रहे हैं और मुसलमानों को भाजपा का डर दिखाकर जोड़ रहे हैं. हम लोग जात की राजनीति नहीं कर रहे हैं. हम बिहार बिहार की बात करेंगे तो बिहार के विभिन्न समूहों की बात होगी और हर आदमी जो पैदा हुआ है वो तो किसी ना किसी जाति का है ही तो उस नजरिए से जाति की बात हो सकती है. लेकिन जाति हम लोगों के लिए सर्वोपरि नहीं है.

सवाल 10: क्या एनडीए के खिलाफ एंटी-इनकंबेंसी है?

प्रशांत किशोर का जवाब: नीतीश कुमार का मानसिक-शारीरिक पतन लोग कम करके आंक रहे हैं. कोविड में तीन महीने के कुप्रबंधन ने नीतीश और बीजेपी को 206 से 115 सीटों पर ला दिया. आज भारी एंटी-इनकंबेंसी है. जेडीयू को 25 सीटें भी नहीं मिलेंगी. नीतीश अगला सीएम नहीं बनेंगे. अगर एनडीए की सरकार बनी, तो बीजेपी अपना सीएम बनाएगी. नीतीश के पास अब छह महीने हैं—जितना लूटना है, लूट लें. नवंबर में बिहार को नया सीएम मिलेगा.”

सवाल 11: जन सुराज के कैंपेन के तीन मुख्य मुद्दे क्या होंगे?

प्रशांत किशोर का जवाब: “पहला, शिक्षा। दूसरा, पलायन और रोजगार। तीसरा, भ्रष्टाचार से मुक्ति. हम चाहते हैं कि 15 साल तक के बच्चों को बेहतरीन शिक्षा मिले, ताकि वे बोझ न बनें. 15 से 50 साल के युवाओं को रोजगार और पूंजी मिले, न कि सिर्फ सरकारी नौकरी. और एक ऐसी व्यवस्था हो, जहां नाली-गली, राशन कार्ड, या जाति प्रमाणपत्र के लिए 100-500 रुपये न देने पड़ें.”

सवाल 9: जन सुराज के फाउंडर की जातिगत जनगणना पर क्या राय

प्रशांत किशोर का जवाब: राहुल गांधी कह रहे हैं किजाति सर्वेक्षण करा दो बस सब कुछ ठीक हो जाएगा. अगर जातियों के सर्वे ही सब ठीक हो जाता है जाति का सर्वेक्षण होना चाहिए. कोई भी सर्वेक्षण कराओ जिससे आपको समाज के बारे में बेहतर जानकारी हो. उससे कोई दिक्कत नहीं है उससे तो फायदा ही है. लेकिन अगर जातियों के सर्वेक्षण से ही सब कुछ हो जाता तो कोई आप लोग राहुल गांधी से यह सवाल नहीं पूछ रहे हैं कि भाई दलितों की गणना तो आज 75- 78 साल से हो रही है उनकी स्थिति क्यों नहीं सुधरी, सिर्फ गणना कर लेने मात्र से थोड़ी ना सुधार हो जाएगा.

प्रशांत किशोर का जवाब: बिहार में जातीय जनगणना हुई जातीय जनगणना जिन दलों ने नेताओं ने कराने का दावा किया. उन्होंने उन रिपोर्ट को पढ़ा भी नहीं.  तेजस्वी यादव से पूछ लीजिए कि जातीय जनगणना में क्या फाइंडिंग आया है, उसमें फाइंडिंग आया है कि 3% दलित समाज के साथी ही 12वीं क्लास पास कर रहे हैं. 7 फीसदी से कम अति पिछड़ा समाज के लोग ही 12वीं पढ़ रहे हैं. इस पे तो चर्चा की नहीं. समाज में आग लगाने के लिए जातीय जनगणना होना चाहिए, नहीं होना चाहिए. इस पर राजनीति की, जब रिपोर्ट आ गई उसको पढ़ोंगे उसमें जो फाइंडिंग आई है. उस पर कुछ काम करोगे तब तो सुधार होगा. 

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